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| Madhuri Gupta file photo |
इश्क मुहब्बत में पागल एक लेडी अफसर की कहानी
अदालत ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को गोपनीय सूचनाएं देने के दोषी मानते हुए माधुरी गुप्ता को तीन वर्ष की कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने माधुरी के तर्क को खारिज कर दिया कि महिला होने के नाते सहानुभूति बरती जाए, और कहा कि उसने देश की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान पहुंचाया है। माधुरी गुप्ता पाकिस्तान में स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रेस एवं सूचना सचिव रही थीं, और उन्हें 2010 में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
पटियाला हाउस अदालत में अतिरिक्त सत्र के न्यायाधीश सिद्धार्थ शर्मा ने बचाव पक्ष और सरकारी पक्ष की सुनवाई के बाद फैसले में यह दर्ज किया कि आरोप गंभीर हैं और दोषी व्यक्ति एक शिक्षित महिला हैं। माधुरी, जिन्हें यूपीएससी पास करने के बाद विभिन्न देशों के दूतावासों में कार्यरत रहने का अनुभव रहा है, उस समय इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास में सेवानिवृत्ति पर थीं। अदालत ने व्यक्ति के उस पद पर नियुक्त होने का अपेक्षा की कि वह आम नागरिक से अधिक जिम्मेदारी से काम करेगा। दोषी के कार्य से देश की प्रतिष्ठा पर आक्षेप लगा है, और अदालत ने इसे सहानुभूति की हकदार नहीं माना।
माधुरी गुप्ता, एक भारतीय विदेश सेवा की वरिष्ठ अधिकारी थीं। उनकी उम्र 52 साल थी लेकिन वे अविवाहित रहीं। उन्होंने इजिप्ट, मलेशिया, जिंबाब्वे, इराक, लीबिया सहित कई देशों में वरिष्ठ पदों पर काम किया था और उर्दू में अच्छी पकड़ रखती थीं। उन्हें पाकिस्तान भेजा गया जहां उन्हें वीजा के साथ-साथ मीडिया प्रभार भी दिया गया था।
पाकिस्तान में तैनात होने वाले सभी अधिकारियों पर इंटेलिजेंस एक पूरी नजर रखती है। एक पार्टी में माधुरी गुप्ता को जमशेद उर्फ जिमी नामक एक 30 साल के युवक से मिला। उसकी वॉकपटुता और हाजिर जवाबी ने माधुरी गुप्ता का दिल मोह लिया और वे उसके प्यार में पड़ गईं। इसके बाद माधुरी गुप्ता ने इस्लाम की शादी कर ली।
इंटेलिजेंस ने माधुरी गुप्ता पर तेजी से नजर रखी, और उनके ईमेल और फोन सर्विलेंस को बदल दिया। यहां तक कि उन्होंने खुद बताया कि माधुरी गुप्ता भारत की गुप्त सूचनाओं को जमशेद को दे रही हैं।
बाद में पता चला कि जमशेद ISI का जासूस था, और ISI ने उसे ट्रेनिंग दी थी ताकि वह माधुरी गुप्ता को फसा सके। ISI को पता चला कि उनकी अविवाहित और वरिष्ठ पदों पर काम करने वाली उम्र में वह भारत से संबंधित सूचनाओं के लिए संभावित संदेह था।
इसके बाद भारत ने उसे बुलाया और दिल्ली आते ही उसे गिरफ्तार कर लिया। उसने जब सबूत देखा, तो उसने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया और उसे 3 साल की कारावास की सजा सुनाई गई।
कोविड-19 महामारी के दौरान उसे थोड़ी देर के लिए जेल से जमानत मिली, और उसने गुमनामी में अजमेर जाने का फैसला किया। फिर खबर आई कि उसकी गुमनामी में ही मौत हो गई, जिसमें उन्हें कोविड, डायबिटीज और अन्य कई बीमारियों का सामना था।
उनका अंतिम संस्कार मोहल्ले वालों और नगर निगम ने किया, और उनके मरने के बाद वहां उनके लिए कोई रोने वाला नहीं था, ना ही कोई दूसरे संस्कार करने वाला था।
इस घटना से हिंदू लड़कियों को सीख मिलनी चाहिए कि वे सावधान रहें, और अपने जीवन में सुरक्षित रहें।