25 जून 1975: भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल की काली छाया

 

आज 25 जून है, यह दिन बहुत से लोग भूल गए होंगे, लेकिन इस दिन को याद दिलाना मेरा कर्त्तव्य है, क्योंकि आज संसद में विपक्ष का चोला ओढ़कर संविधान बचाने का खोखला ढोंग करने वालों को बेनक़ाब करना और उनका वास्तविक चरित्र देश को बताना आवश्यक है।

आपको ज्ञात होगा कि 1975 में किस तरह से संविधान की कमियों का लाभ उठाया गया था। संविधान में आपातकाल के तीन प्रावधान थे, जिनमें से एक था आन्तरिक अशांति। इंदिरा गांधी जी ने इस शब्द का राजनीतिक दुरुपयोग किस तरह से किया था, यह आज आम जनमानस से छिपा नहीं है।

जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज थे जो इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव में भ्रष्टाचार की सुनवाई कर रहे थे। 8 जून 1975 को फैसला सुनाने का दिन था, लेकिन इंदिरा गांधी ने राजनीतिक दबाव डालकर फैसले की तारीख को आगे बढ़ा दिया क्योंकि 8 जून को गुजरात विधानसभा का चुनाव था।

8 जून के बाद क्या हुआ? जस्टिस सिन्हा अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उन्हें 5 लाख रुपये और सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की पेशकश की गई, लेकिन सिन्हा ने उस लालच को ठुकरा दिया और 12 जून 1975 को बहादुरी से भरा फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता समाप्त कर दी। इंदिरा गांधी ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया, लेकिन वह जान चुकी थीं कि अब उनका जाना तय है। तभी 25 जून 1975 को देश को आपातकाल मिला।

MISA कानून का दुरुपयोग

आपको ज्ञात होगा कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अपने हाथों में ले रखा था। जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मुद्दे पर संविधान की रक्षा हेतु आधारभूत ढांचे का प्रावधान किया था, तब 42वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 368 में यह प्रावधान जोड़ दिया गया कि संविधान संशोधन को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे आधारभूत ढांचे के आधार पर देखा।

और कुछ मूर्खों को आज तानाशाही दिखाई दे रही है। तानाशाही यहीं नहीं रुकी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति अपने मन से की। आइए समझते हैं:

विधि आयोग 1958 के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के जजों में से आयु में सबसे बड़े जज को किया जाना था। लेकिन देखिए कैसे इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट को नचाया:

1973 में, 24 अप्रैल 1973 को सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच ने केशवानंद भारती मुद्दे का निर्णय सुनाया, जो सरकार के खिलाफ था। उसी दिन मुख्य न्यायाधीश रिटायर हो गए और अब नए मुख्य न्यायाधीश चुनने की बारी थी। तीन वरिष्ठ जज उस पीठ में शामिल थे जिसने केशवानंद भारती मामले का निर्णय दिया था। इसलिए इंदिरा गांधी ने उन तीनों जजों को छोड़कर ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया।

और ऐसा ही उन्होंने 1977 में किया था।

जिसने सुप्रीम कोर्ट, ED, संविधान को खुलेआम नचाया था, उन्हीं के समर्थकों को आज तानाशाही नजर आ रही है।

Sunil Kumar Sharma

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