![]() |
| Mohan Bhagwat RSS |
मोहन भागवत ने कहा कि एक सच्चा सेवक अहंकारी नहीं होता। इस चुनाव में भाषाई मर्यादा तार-तार हो गई है। उन्होंने इस बात को भी बताया कि विपक्षी दलों को विरोधी दल नहीं कहना चाहिए। राजनीति में पक्ष और प्रतिपक्ष होते हैं। किसी को भी अपनी अभिव्यक्ति सत्तारूढ़ दल और विरोधी दल के रूप में नहीं करना चाहिए। ऐसा कहना उस जनता के लिए अपमानजनक होता है, जो जनतंत्र का आधार है और मत देकर सरकार बनाती है। सरकार बन जाने पर भागवत यह संबोधन काफी महत्वपूर्ण मानते हैं।
इसके साथ ही उन्होंने संघ और भाजपा के बीच मतभेदों की भी बात की। चुनावों के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा आरएसएस पर दिए गए भाषण के बाद, चुनाव के बाद परिणाम आने के बाद और सरकार का गठन होने के बाद संघ प्रमुख की कड़ी प्रतिक्रिया आई। माना जा रहा है कि नड्डा के बयान के बाद आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने चुनाव में व्यापक रूप से संघनन नहीं किया, हालांकि वे बीजेपी को वोट देने में सक्षम रहे। क्या इसी कलह के कारण भाजपा के लिए चुनावी परिणाम कमजोर रहे? जो लोग आरएसएस के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं, उन्हें यह पता है कि संघ भाजपा के विचारधारा का मूल है। भाजपा भी विश्व हिंदू परिषद, संस्कार भारती, दुर्गावाहिनी आदि की तरह आरएसएस का राजनैतिक संगठन मानी जा सकती है।
जेपी नड्डा के बयान के बाद भाजपा में इस बारे में कोई चर्चा अभी तक नहीं हुई। उनका कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन उन्हें 30 जून तक का एक्सटेंशन दिया गया था और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इस बारे में भाजपा के भीतर कोई तत्कालिक प्रतिक्रिया नहीं आई है जो उनके संघ संबंधी बयान पर हो। क्या संघ की दिशानिर्देशों ने सरकार गठन में यह प्रभाव डाला? भागवत की प्रतिक्रिया सामान्य नहीं, बल्कि काफी तीखी है। उन्होंने पार्टी के नेताओं के अहंकार पर कड़ी टिप्पणी की है और संसद में पक्ष और प्रतिपक्ष के महत्व पर भी जोर डाला है।
400 सीटों का लक्ष्य रखने के बावजूद भाजपा ने 272 सीटों तक ही पहुंचा, जिससे गहरा चिंतन जरूरी है। सरकार के गठन के बाद एक समीक्षा की अपेक्षा है। मोहन भागवत भी चिंतित हैं, खासकर यूपी में भाजपा की हार के बाद जनता का बड़ा हिस्सा ज़ख्मी है। इतने काम करने के बाद भी अगर जनता ने वोट नहीं दिया, तो सवाल उठते हैं। क्या प्रदेश की लिस्ट को नकारते हुए दिल्ली में आलकमान ने 30 प्रत्याशियों को बिना विचार के थोपा? क्या उनमें से 28 हार गए और अरुण गोविल ने बचाई अपनी सीट?
भाजपा को गहरा चिंतन करना पड़ेगा
