"अधीर रंजन चौधरी की हार: ममता की रणनीति और बंगाल की राजनीतिक बदलती हवा"


अधीर रंजन चौधरी, जो कि पश्चिम बंगाल के बहरामपुर क्षेत्र से लगातार पांच बार सांसद रह चुके थे (1999-2019), का राजनीतिक करियर एक नए मोड़ पर आ गया है। इस बार ममता बनर्जी की रणनीति ने चौधरी की इस लगातार जीत को रोक दिया। ममता बनर्जी ने बहरामपुर से एक गुजराती मुसलमान युसुफ़ पठान को टिकट दिया, जिसने बंगाली भाषा का ज्ञान न होने और राजनीतिक बैकग्राउंड न होने के बावजूद अधीर रंजन चौधरी को एक लाख वोटों से हरा दिया।

अधीर रंजन चौधरी का राजनीतिक सफर

अधीर रंजन चौधरी ने बहरामपुर से पांच बार सांसद बनकर एक मजबूत राजनीतिक पकड़ बनाई थी। इस क्षेत्र की 65 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या ने हमेशा उनके पक्ष में वोट दिया था। चौधरी ने भी तुष्टिकरण की राजनीति में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिससे वह मुस्लिम वोटरों के बीच लोकप्रिय रहे। उनके खिलाफ कभी कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं लड़ा, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित होती रही।

ममता बनर्जी की रणनीति

ममता बनर्जी, जो कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, ने इस बार बहरामपुर सीट पर एक नई रणनीति अपनाई। उन्होंने युसुफ़ पठान को टिकट दिया, जो गुजराती मुसलमान हैं और जिनका बंगाली भाषा का ज्ञान सीमित है। पठान का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था, लेकिन ममता की रणनीति ने काम किया। मुसलमान प्रत्याशी मिलते ही वोटरों ने अधीर रंजन चौधरी का राजनीतिक अनुभव और 25 साल का तुष्टिकरण नजरअंदाज कर दिया।

युसुफ़ पठान की जीत

युसुफ़ पठान की जीत ने स्पष्ट कर दिया कि बहरामपुर के मुस्लिम वोटरों के लिए उनकी धार्मिक पहचान अधिक महत्वपूर्ण थी। ममता बनर्जी की यह चाल सफल रही और अधीर रंजन चौधरी को एक लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा। युसुफ़ पठान की जीत ने यह भी दिखाया कि मुस्लिम वोटर अपने ही धर्म के प्रत्याशी को प्राथमिकता देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाते।

कांग्रेस को मिला जवाब

इस हार ने कांग्रेस पार्टी को भी एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। कांग्रेस ने लंबे समय से तुष्टिकरण की राजनीति की थी, लेकिन इस बार उन्हें खुद इसके परिणाम भुगतने पड़े। ममता बनर्जी ने कांग्रेस को उसी के इंजेक्शन का डोज़ दिया। यह हार कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई, क्योंकि यह दिखा दिया कि उनकी तुष्टिकरण की राजनीति अब उतनी प्रभावी नहीं रह गई है।

बदलती राजनीतिक हवा

इस चुनाव ने बंगाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को भी उजागर किया। ममता बनर्जी की राजनीतिक चतुराई और रणनीतिक सोच ने यह साबित कर दिया कि वह अपने विरोधियों को मात देने में माहिर हैं। युसुफ़ पठान की जीत ने यह भी दिखाया कि बंगाल की राजनीति में धार्मिक पहचान और क्षेत्रीय राजनीति का प्रभाव कितना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

अधीर रंजन चौधरी की हार और युसुफ़ पठान की जीत ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। ममता बनर्जी की रणनीति ने यह साबित कर दिया कि वह चुनावी राजनीति में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस के लिए यह एक सीखने का मौका है कि तुष्टिकरण की राजनीति का हमेशा एक समान प्रभाव नहीं होता। इस चुनाव ने बंगाल की बदलती राजनीतिक हवा को भी साफ कर दिया, जहां धार्मिक और क्षेत्रीय पहचान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Sunil Kumar Sharma

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