"15 लाख का वादा: भ्रम, वास्तविकता और विपक्ष का प्रचार"

 

भारत की राजनीति में वादों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले, उन्होंने कई वादे किए, जिनमें से एक सबसे चर्चित वादा था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा, और हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये जमा किए जाएंगे। यह वादा मोदी सरकार के आलोचकों के लिए एक हथियार बन गया है, लेकिन क्या जनता वास्तव में इस वादे को समझने में विफल रही, या विपक्ष ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया?

जनता बेवकूफ नहीं है

जनता कभी भी बेवकूफ नहीं रही है। जनता ने मोदी सरकार से कभी 15 लाख रुपये की मांग नहीं की। वास्तव में, यह मांग मुख्य रूप से विपक्ष और कुछ पत्रकारों द्वारा की गई थी। नरेंद्र मोदी ने सिर्फ एक उदाहरण के तौर पर बताया था कि विदेशों में कितना काला धन जमा है। उन्होंने कहा था कि यदि यह काला धन वापस लाया गया, तो हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये आ सकते हैं। उन्होंने यह वादा कभी नहीं किया कि हर किसी को 15 लाख रुपये मिलेंगे, बल्कि यह एक सांकेतिक उदाहरण था।

विपक्ष और अंधविरोध

विपक्ष और बीजेपी के अंधविरोधी पत्रकार, जैसे रविश कुमार, ने इस वादे को अपने विरोध का केंद्र बनाया। वे इस बात को समझने में असमर्थ रहे कि मोदी ने असल में क्या कहा था। यह मामला कम आईक्यू का नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का था। विपक्ष ने जानबूझकर इस वादे को गलत तरीके से पेश किया ताकि जनता को भड़काया जा सके।

शर्तें और काला धन

मोदी ने अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण शर्त भी जोड़ी थी कि अगर विदेश में जमा काला धन वापस आया, तो हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये आएंगे। जब काला धन वापस नहीं आया, तो 15 लाख रुपये कैसे आ सकते हैं? यह बात समझने में विपक्ष को परेशानी हुई, या शायद उन्होंने इसे जानबूझकर नजरअंदाज किया।

जनता को समझाने का तरीका

मोदी का जनता को समझाने का तरीका हमेशा से ही सीधा और प्रभावशाली रहा है। उन्होंने विदेशों में जमा काला धन की भारी मात्रा को समझाने के लिए 15 लाख रुपये का उदाहरण दिया। यह एक सांकेतिक भाषा थी, जिसे जनता ने समझा, लेकिन विपक्ष ने इसे गलत तरीके से पेश किया।

वीडियो का संदर्भ

विपक्ष और विरोधियों ने इस वीडियो को बार-बार दिखाया, ताकि जनता के मन में भ्रम पैदा किया जा सके। लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी का वादा सांकेतिक था, और जनता ने इसे समझा था।

निष्कर्ष

नरेंद्र मोदी का 15 लाख रुपये का वादा वास्तव में काला धन की भारी मात्रा को दर्शाने का एक तरीका था। जनता ने इसे सही तरीके से समझा, लेकिन विपक्ष ने इसे राजनीतिक हथियार बना लिया। जनता बेवकूफ नहीं है, और उसने मोदी सरकार से कभी 15 लाख रुपये की मांग नहीं की। यह मांग केवल विपक्ष और अंधविरोधी पत्रकारों की थी, जिन्होंने इसे गलत तरीके से पेश किया और जनता को भड़काने की कोशिश की।

यह राजनीतिक रणनीति और सांकेतिक भाषण का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसे सही संदर्भ में समझा जाना चाहिए। जनता की बुद्धिमानी और समझदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जनता ने मोदी सरकार का समर्थन किया और विपक्ष की चालों को समझा। यही लोकतंत्र की ताकत है।

Sunil Kumar Sharma

LATEST NEWS, INSHORTS , AT A GLANCE , BREAKING NEWS , EYE CATCHING NEWS THAT IMPACT ON OUR LIVES

एक टिप्पणी भेजें

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

और नया पुराने