IAS Smita Sabharwal's Disability Quota Remark Draws Massive Criticism

 

IAS Disability Quota Row: Smita Sabharwal's post drew sharp responses Image Source NDTV 

IAS स्मिता सुभारवाल का बयान: दिव्यांग कोटा पर विवाद

क्या एक डिसेबिलिटी कोटा वाले व्यक्ति को पायलट बनाना सही है? इस सवाल ने सोशल मीडिया पर IAS स्मिता सुभारवाल के बयान के बाद हंगामा मचा दिया। उन्होंने हाल ही में UPSC सिविल सेवा चयन प्रक्रियाओं में डिसेबिलिटी कोटा की उपयुक्तता पर शक जताया।

ये टिप्पणी कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच नाराजगी का कारण बनी है। कई लोगों ने इसे 'बहुत घटिया और बहिष्कारी' दृष्टिकोण बताया है। समाज के कई हिस्सों में इस बयान की कड़ी आलोचना हो रही है और इसे विकलांगता के प्रति असंवेदनशील माना जा रहा है।

जिस मुद्दे पर ये विवाद गर्माया है, वह सीधे तौर पर हमारे समाज के समावेशी दृष्टिकोण पर सवाल उठाता है। अब देखना ये है कि इस बहस से क्या निष्कर्ष निकलते हैं और ये हमारे भविष्य के सिविल सेवा चयन प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करता है।

स्मिता सुभार्वाल का बयान

हाल ही में IAS अधिकारी स्मिता सुभार्वाल ने एक बयान दिया, जिसने काफी विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने अपंगता कोटा पर विचार व्यक्त किए जिसने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों जगहों पर आलोचना को जन्म दिया।

बयान का संदर्भ

स्मिता सुभार्वाल का बयान उस समय आया जब IAS अधिकारी पूजा खेड़कर की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे थे। पूजा खेड़कर को उनकी अपंगता के आधार पर चुना गया, लेकिन यह चयन विवाद का विषय बन गया। यहां अधिक जानकारी दी गई है। स्मिता ने इस संदर्भ में बयान दिया था कि क्या एयरलाइंस विकलांग पायलटों को नियुक्त करती हैं? इस टिप्पणी ने कई लोगों को नाराज कर दिया और आलोचनाओं की बाढ़ लाकर खड़ी कर दी। ज़्यादा जानें

बयान में उठाए गए मुद्दे

स्मिता सुभार्वाल ने अपने बयान में मुख्यतः कार्य की प्रकृति और क्षमता पर ध्यान केंद्रित किया। उनका कहना था कि कुछ नौकरियां ऐसी होती हैं जहाँ शारीरिक क्षमता ज़रूरी होती है, और ऐसी जगहों पर अपंगता कोटा कैसे लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अपंगता कोटा का प्रयोग केवल तब होना चाहिए जब यह सुनिश्चित हो कि उम्मीदवार उस कार्य को पूरी क्षमता से निभा सकेगा। इसी पर एक विश्लेषण किया गया है।

इस बयान ने विशेषकर विकलांगता अधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की नाराज़गी को बढ़ा दिया। उनका कहना था कि यह टिप्पणी विकलांग व्यक्तियों की क्षमताओं और योगदान को नज़रअंदाज़ करती है। कई लोगों ने इसे सामाजिक न्याय और समावेशीता के खिलाफ माना। कोई नई जानकारी भी सामने आई है।

समाज में समावेशीता और समानता के महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह बयान एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अब देखना यह है कि इस मामले में आगे क्या होता है और क्या बदलाव किए जा सकते हैं ताकि सभी को समान अवसर मिले।

विवाद और आलोचना

IAS अधिकारी स्मिता सभरवाल द्वारा विकलांगता कोटा पर दिए गए बयान ने भारी विवाद को जन्म दिया है। उनकी टिप्पणियों ने न केवल राजनीतिक हलकों में बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में भी आक्रोश पैदा किया है। आइए जानते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों से क्या प्रतिक्रियाएँ आई हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

La Ruai Rock Stream, IaLy Town, Chu Pah, Gia Lai Province, Vietnam Photo by Quang Nguyen Vinh

शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी जैसी राजनीतिक नेताओं ने स्मिता सभरवाल के बयान पर कड़ी आलोचना की है। India Today के एक लेख के अनुसार, प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “विश्वासघाती” और “असंवेदनशील” कहा है। उनका मानना है कि ऐसे बयान समाज के विकलांग व्यक्तियों के संघर्ष को नजरअंदाज करते हैं। उनकी राय में:

  • विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण का होना ज़रूरी है क्यूंकि यह उन्हें बराबरी का मौका देता है।
  • भिन्न-क्षमताओं वाले लोग भी समाज में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं और उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।

समाज से आई प्रतिक्रियाएँ

स्मिता सभरवाल के बयान पर समाज के विभिन्न समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। NDTV के अनुसार, कई सामाजिक संगठनों ने इसे विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के खिलाफ बताया है। उनके तर्कों में शामिल हैं:

  • समानता का अधिकार: हर व्यक्ति को समाज में बराबरी का मौका मिलना चाहिए, चाहे उनकी शारीरिक स्थिति कुछ भी हो।
  • समावेशिता: समाज को सबको साथ लेकर चलना चाहिए और विकलांग व्यक्तियों की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए।

इन प्रतिक्रियाओं ने विवाद को और भी गहरा कर दिया है और यह सवाल खड़ा किया है कि समाज में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके प्रति नजरिए में कितनी प्रगति हुई है। Times of India के अनुसार, कई लोगों ने इस बयान को अस्वीकृत और असंवेदनशील करार दिया है।

इस पूरे विवाद ने यह साबित किया है कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार और उनकी समावेशिता अभी भी बहुत बड़ा मुद्दा है, जिस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा।

वास्तविकता और चुनौतियाँ

आईएएस स्मिता सबरवाल की 'डिसेबिलिटी कोटा' पर टिप्पणी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और इसके लिए उनको बड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। इस विषय की गहराई में जाने से पहले, आइए हम समझें कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार और शासन में समावेशिता क्यों आवश्यक हैं और उनसे संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं।

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार हर नागरिक के समान होते हैं, लेकिन अक्सर उनके साथ भेदभाव होता है। उनके लिए कोटा की आवश्यकता इसलिए भी है ताकि वे बराबरी के आधार पर जीवन जी सकें।

  • शिक्षा में: स्कूल और कॉलेजों में दिव्यांग छात्रों के लिए विशेष सीटें आरक्षित की जाती हैं।
  • नौकरी में: सरकारी और कुछ निजी कंपनियों में भी दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कोटा होता है।
  • रिक्शा और बसों में सुविधा: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सरकारी परिवहन में विशेष सुविधाएं दी जाती हैं।

इस तरह दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति समाज की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उन्हें अधिकतम अवसर प्रदान करें। दिव्यांग अधिकारों पर अधिक पढ़ें.

शासन में समावेशिता

शासन में समावेशिता का अर्थ है सभी वर्गों का समान प्रतिनिधित्व और भागीदारी। यह केवल एक नीति नहीं है, बल्कि एक दृष्टिकोण है जो सभी के विकास के लिए जरूरी है।

  • नीति निर्माण में भागीदारी: दिव्यांग व्यक्तियों को नीति निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उनके मुद्दों को समझा और हल किया जा सके।
  • प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार: शासन में समावेशिता दिव्यांग व्यक्तियों के लिए जरूरी व्यवस्थाओं को मजबूत करती है।
  • सामाजिक दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता: समाज को उनके प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। दिव्यांग व्यक्तियों को दया की नहीं, बल्कि समानता और सम्मान की आवश्यकता है।

समावेशिता केवल नीतियों में नहीं, बल्कि समाज के हर स्तर पर लागू होनी चाहिए। शासन में समावेशिता के बारे में और जानें

इस तरह शासन और समाज दोनों को मिलकर दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके लिए कोटा की मांग को सही मायने में लागू करना चाहिए।

निष्कर्ष

स्मिता सबरवाल के टिप्पणी ने समाज में गहरा असर डाला है। इसे लेकर आई आलोचनाएं यह संकेत देती हैं कि इस प्रकार के बयान आज भी संवेदनशील मुद्दों को उजागर करते हैं।

ऐसे बयान दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ सकते हैं, विशेषकर विशिष्ट समुदायों के आत्मविश्वास और सशक्तिकरण पर।

यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि प्रत्येक बयान का सही संदर्भ में अच्छी तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

समाज में समानता और समावेशन को बढ़ावा देने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।


Sunil Kumar Sharma

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