शरियत बनाम संविधान: एक विवादित मुद्दा

 


शरियत बनाम संविधान: एक विवादित मुद्दा

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो शरियत के समर्थकों द्वारा नामंजूर कर दिया गया। उनका कहना है कि "ये देश शरियत से चलेगा, इस देश का मुस्लिम शरियत से चलेगा।" इस बयान ने भारतीय समाज में एक नई बहस को जन्म दिया है, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच की खाई को उजागर किया गया है। 

इस्लाम में शादी: एक कॉन्ट्रैक्ट

इस्लाम में शादी को एक कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है। मौलवियों का कहना है कि यदि यह कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो जाता है, तो रिश्ता भी समाप्त हो जाता है। इस विचारधारा पर तस्लीमा नसरीन जैसी मुस्लिम लेखिकाओं ने सवाल उठाए हैं। वे पूछती हैं कि अगर कॉन्ट्रैक्ट में यह तय हुआ था कि महिलाएं केवल बच्चे पैदा करेंगी और नौकरी नहीं करेंगी, तो कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद उन बच्चों का पालन-पोषण कौन करेगा?

मुस्लिम पर्सनल लॉ की चुनौतियाँ

मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, महिलाओं को मानसिक रूप से पंगु बना दिया जाता है। यह सवाल उठता है कि क्या यह इस्लाम का सच्चा रूप है या एक अंधविश्वास और पाखंड का धंधा? मौलवियों के दोहरे मापदंड को देखते हुए, जो दिन-रात अल्पसंख्यक अधिकारों की मांग करते हैं, लेकिन जब संविधान लिंग के आधार पर भेदभाव ना करने की बात करता है, तो वे शरियत को ऊपर रखते हैं।

शरियत और संविधान: एक टकराव

जो लोग इस देश को शरियत से चलाने की मांग कर रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान भेजने का सुझाव दिया गया है। यह एक विवादित विचार है, लेकिन इसका उद्देश्य यह बताना है कि भारत का संविधान सबसे ऊपर है और शरियत को इसे चुनौती नहीं देनी चाहिए। इस देश में मनु स्मृति की प्रतियां जलाने वाले, शरियत की प्रतियां कब जलाएंगे?

शाहबानो मामला

1986 में शाहबानो का मामला इस मुद्दे की जड़ है। अगर शाहबानो के साथ न्याय हुआ होता, तो आज धार्मिक आधार पर शोषण करने का दुस्साहस किसी में नहीं होता। यह मामला केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं जुड़ा है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। जिस शरियत से पाकिस्तान चल रहा है, उसी शरियत को हमारे मौलवी कानून बताकर देश को खतरे में डाल रहे हैं।

आतंकवाद का खतरा

आतंकवाद का खतरा बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से है। इसलिए मदरसों को खत्म करने का सुझाव दिया गया है। यह एक कठोर कदम है, लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।

निष्कर्ष

शरियत बनाम संविधान का यह मुद्दा भारतीय समाज के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह समय है कि हम साहस दिखाएं और शरियत को उखाड़ फेंके, और उसके समर्थकों को बाहर करें। संविधान और न्यायिक प्रणाली का सम्मान करना हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है, और इसे बनाए रखना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

Sunil Kumar Sharma

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