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| अल्फ्रेड पार्क |
**अल्फ्रेड पार्क: चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संग्राम**
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे। उनका जीवन और बलिदान आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद पार्क) में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। उनका अदम्य साहस और देशभक्ति का जज्बा आज भी देशभक्तों के दिलों में जिंदा है।
### अल्फ्रेड पार्क का ऐतिहासिक महत्व
अल्फ्रेड पार्क, जहाँ चंद्रशेखर आजाद ने आखिरी लड़ाई लड़ी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वही स्थान है जहाँ आजाद ने अपने आप को अंग्रेजों के हाथों गिरफ़्तार होने से बचाने के लिए अंतिम गोली खुद को मारी थी। यह घटना भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में वीरता और बलिदान का प्रतीक बन गई।
### आजाद का प्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गाँव में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन काशी विद्यापीठ में पढ़ाई के दौरान उन्होंने खुद को 'आज़ाद' नाम दिया। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए और उसमें भाग लिया। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया और न्यायाधीश ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने कहा, "मेरा नाम आज़ाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है।" इस घटना के बाद वे चंद्रशेखर 'आज़ाद' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
### क्रांतिकारी जीवन
चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वे अपने साथी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अनेक योजनाएँ बनाते रहे। काकोरी कांड, सांडर्स हत्याकांड और असेम्बली बम कांड जैसी घटनाओं में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
### अंतिम लड़ाई और बलिदान
27 फरवरी, 1931 का दिन चंद्रशेखर आजाद की वीरता का प्रतीक है। उस दिन अल्फ्रेड पार्क में आजाद अपने साथी सुखदेव राज से मिल रहे थे। तभी किसी मुखबिर ने अंग्रेजों को उनके वहाँ होने की खबर दे दी। अंग्रेज पुलिस ने पार्क को घेर लिया। आजाद ने डटकर मुकाबला किया और कई पुलिसवालों को मार गिराया। जब उनकी बंदूक में आखिरी गोली बची, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली ताकि वे अंग्रेजों के हाथ न लगें। उनके इस बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उन्हें हमेशा के लिए अमर बना दिया।
### आजाद की विरासत
चंद्रशेखर आजाद का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर है। उनके साहस और आत्मबलिदान ने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल कायम की। आज भी अल्फ्रेड पार्क, जो अब चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है, स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियों को जीवंत रखता है। यहाँ उनकी मूर्ति स्थापित है जो उनके अदम्य साहस और बलिदान की गाथा सुनाती है।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन और बलिदान हर भारतीय को अपने देश के प्रति कर्तव्य और निष्ठा की याद दिलाता है। उनके आदर्श और उनके द्वारा दिखाए गए साहस का मार्गदर्शन हमें आज भी प्रेरित करता है।
**जय हिंद!**
