"1899-1900 का भारतीय अकाल: एक भयंकर त्रासदी की कहानी"

 

"1899-1900

सन् 1899 में भारत में मानसून की बारिश विफल हो गई, जिससे देश के अधिकांश हिस्सों में विनाशकारी सूखा पड़ा। यह सूखा 1,230,000 वर्ग किलोमीटर (474,906 वर्ग मील) क्षेत्र में फैला और इसकी चपेट में लगभग 60 मिलियन लोग आए। फसलें सूख गईं, जल स्रोत सूखने लगे, और लाखों लोगों के लिए जीवनयापन असंभव हो गया।

इस भयंकर सूखे ने भारत को एक अभूतपूर्व संकट में धकेल दिया। फसलें नष्ट हो जाने से भोजन की गंभीर कमी हो गई। लोग भुखमरी का शिकार होने लगे, और स्थिति धीरे-धीरे बदतर होती गई। जैसे-जैसे सूखा दूसरे वर्ष तक खिंचा, खाद्य फसलें और पशुधन तेजी से मरने लगे, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई।

1899-1900 के भारतीय अकाल ने लाखों लोगों की जान ले ली। यह अनुमान लगाया गया है कि इस अकाल में लगभग 90 लाख लोग मारे गए। यह त्रासदी भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक काला अध्याय बनकर उभरी, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी ने अपार कष्ट सहे। भूख, बीमारी और कुपोषण ने लोगों की जिंदगी को नर्क बना दिया था।

अकाल की विभीषिका को समझने के लिए हमें उन घटनाओं पर भी नजर डालनी चाहिए जो इस आपदा को और भी विकट बनाती हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, भारत की कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से मानसूनी बारिश पर निर्भर थी। जब बारिश नहीं हुई, तो सरकार की नीतियों और राहत उपायों की कमी ने हालात को और भी बदतर बना दिया। औपनिवेशिक प्रशासन ने खाद्य सामग्री का निर्यात जारी रखा, जिससे स्थानीय स्तर पर खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई। राहत कार्यों में भी देरी और भेदभाव ने लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दीं।

इस भयानक समय की एक महत्वपूर्ण तस्वीर हिस्ट्रीटीवी.इंडिया ने साझा की है, जिसमें एक अमेरिकी पर्यटक और एक अज्ञात पश्चिमी महिला एक अकाल पीड़ित के साथ पोज़ देते हुए नजर आ रहे हैं। यह तस्वीर जॉन डी. व्हिटिंग कलेक्शन / लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस प्रिंट्स एंड फोटोग्राफ्स का हिस्सा है और 1900 में ली गई थी। यह तस्वीर न केवल उस समय की भयावह स्थिति को बयां करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे विदेशियों ने इस त्रासदी को देखा और समझा।

इस अकाल की यादें आज भी भारतीय समाज में गहराई से समाई हुई हैं। यह हमें याद दिलाता है कि प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानवीय गलतियों और उदासीनता ने भी कितनी बड़ी संख्या में लोगों की जान ली।

आज, हमें इन घटनाओं से सबक लेने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण और बेहतर आपदा प्रबंधन नीतियों के प्रति सजग रहकर ही हम भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोक सकते हैं। साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारें और समाज किसी भी आपदा के समय त्वरित और प्रभावी तरीके से प्रतिक्रिया दें, ताकि आम जनता को कम से कम नुकसान हो।

इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि सभी को इस सच्चाई का पता चल सके। यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे भूलना नहीं चाहिए।🙏😔😔😞😞😞

Sunil Kumar Sharma

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